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POLAND DELIVERS PARIS RULEBOOK BUT MISSED “BALANCE” IN THE PACT
POLAND DELIVERS PARIS RULEBOOK BUT MISSED “BALANCE” IN THE PACT
टी. एन. नाइनन यह बात एकदम जाहिर हो चली है कि भारत और चीन के बीच तुलना का कोई तुक नहीं है। ये दोनों देश भौगोलिक रूप से विशाल और अधिक आबादी वाले हैं, दोनों को दो सर्वाधिक तेज गति से विकसित होती अर्थव्यवस्था वाले देश माना जाता है, परंतु आर्थिक वृद्घि के मोर्चे पर वे बीते चार दशक में काफी अलग दायरे में रहे हैं। चीन की अर्थव्यवस्था का आकार भारतीय अर्थव्यवस्था का पांच गुना है। चीन शक्ति के खेल में एक अलग ही दायरे में है जबकि भारत अपने पड़ोस तक में प्रभुत्व गंवा रहा है। तकनीक अधिग्रहण, शिक्षा की गुणवत्ता और गरीबी उन्मूलन के मोर्चे पर चीन हमसे बेहतर है। चुनौतियों से निपटने के मामले में भी उसकी स्थिति हमसे अच्छी है। यह अंतर बताता है कि कैसे अब दोनों देशों की तलाश एकदम जुदा है। चीन के पास मजबूत हथियार निर्माण कार्यक्रम है जबकि भारत रक्षा आयात के क्षेत्र में अग्रणी बना हुआ है। चीन चौथी औद्योगिक क्रांति की ओर मजबूती से बढ़ रहा है जबकि भारत को चीन के अतीत की कम मेहनताने वाले आयात की सफलता के उदाहरण से ही पार पाना है। चीन दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक है और उसकी कुछ कंपनियां दुनिया में अव्वल हैं। भारत का आकार इस क्षेत्र में बहुत छोटा है। ऐसा नहीं है कि भारत के पास दिखाने के लिए कोई सफलता ही नहीं है लेकिन आर्थिक और ताकत के मामले में दोनों देश अलग-अलग क्षेत्र में हैं। शायद वक्त आ गया है कि दोनों देशों की तुलना का काम बंद किया जाए। चीन जहां अमेरिका को चुनौती दे रहा है, वहीं भारत में चीन से तुलना की जा रही है। अगर तुलना ही करनी है तो भारत की तुलना इंडोनेशिया से क्यों नहीं की जाती? अगर ऐसा किया गया तो महाशक्ति बनने की अपनी ही गढ़ी हुई छवि को नुकसान पहुंच सकता है। यह भारत की उन उपलब्धियों के साथ नाइंसाफी होगी जिन तक इंडोनेशिया पहुंच नहीं सका है।
परंतु प्रमुख मानकों पर इंडोनेशिया चीन से बेहतर तुलना लायक है। इंडोनेशिया की अर्थव्यवस्था 10 खरब डॉलर से अधिक की है और उसकी प्रति व्यक्ति आय 4,000 डॉलर के साथ भारत से दोगुनी है। हम शायद 2030 तक उस स्तर पर पहुंच सकेंगे। चीन की प्रति व्यक्ति आय तो 8,600 डॉलर है जो भारत की पहुंच से कोसों दूर है। इंडोनेशिया की आर्थिक वृद्घि दर 5 से 6 फीसदी के साथ काफी अच्छी है। उसकी आबादी भी बड़ी है, हालांकि वह भारत के पांचवें हिस्से के बराबर ही है। दोनों देशों में आबादी की वृद्घि की दर लगभग समान है। दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाएं समान ढंग से चलती हैं। दोनों के पास बड़ा सार्वजनिक क्षेत्र है और उन्होंने बाजार के बजाय मूल्य नियंत्रण को तरजीह दी है। दोनों देश सुधार के पथ पर हैं और उन्होंने विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया है। दोनों की क्रेडिट रेटिंग लगभग समान है, हालांकि भारत वृहद आर्थिक संकेतकों पर बेहतर स्थिति में है। इंडोनेशिया अन्य मोर्चों पर बेहतर है।
विश्व बैंक की कारोबारी सुगमता सूची में वह बेहतर स्थिति में है। भ्रष्टïाचार के मामले में भी उसकी स्थिति भारत से अच्छी है। सामाजिक रुझानों के मामले में भी दोनों देश एक दूसरे के समान है। हालांकि भारत की अधिकांश आबादी हिंदू और इंडोनेशिया की मुस्लिम है, परंतु इंडोनेशिया को एक ऐसा समाज माना जाता है जो व्यापक तौर पर जातीय और धार्मिक विविधता को लेकर सहिष्णु है। अलगाववादी आंदोलन दोनों देशों में लंबे समय से समस्या बने रहे। हाल के दिनों में धार्मिक विभाजन ने दोनों देशों में तनाव और हिंसा में इजाफा किया है। भारत की तरह इंडोनेशिया के समाज में भी धार्मिकता बढ़ रही है। वहां हिजाब पहनने वाली महिलाओं की तादाद बढ़ी है। भारत में भी राजनीति हिंदू बहुसंख्यकवाद की ओर केंद्रित है और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का संस्थागत नियंत्रण धीरे-धीरे बढ़ रहा है। विभिन्न समूहों का दखल भी बढ़ रहा है। इंडोनेशिया में धार्मिक पुलिस का गठन और रूढि़वादी धार्मिक नेताओं का उभार नजर आ रहा है जो खुद को नैतिकता का झंडाबरदार बताते हैं और इस्लामिक राज्य का प्रसार चाहते हैं। दोनों देशों के बीच अंतर भी है। इंडोनेशिया में बड़े राजनीतिक उतार-चढ़ाव और तीक्ष्ण आर्थिक घटनाएं नजर आई हैं।
उसका लोकतांत्रिक इतिहास कहीं अधिक ताजा है। वहीं आर्थिक मोर्चे पर भारत गरीब जरूर है लेकिन उसका औद्योगिक और वित्तीय क्षेत्र अधिक विविध और विकसित है। दोनों के सामने विकास की एक समान चुनौतियां हैं: औद्योगीकरण, बुनियादी विकास, व्यापक असमानता से निपटना और गरीबी का मुकाबला करना आदि। यानी भले ही हमारी आकांक्षा चीन का संक्षिप्त लोकतांत्रिक संस्करण बनने की हो लेकिन हम शायद इंडोनेशिया का बड़ा लेकिन अधिक परिपूर्ण संस्करण बन सकते हैं।
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