Thursday 4 April 2019

लोकपाल

  लोकपाल
चर्चा में क्यों है?
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष (पी.सी. घोष) को राष्ट्रपति ने देश का पहला लोकपाल नियुक्त किया है।
 लोकपाल क्या है ?
  • लोकपाल एक ‘भ्रष्टाचार विरोधी प्राधिकरण’ (Anti-corruption Authority) है जिसे ओम्बुड्समैन (Ombudsman) भी कहा जाता है।
  • यह भ्रष्टाचार एवं अन्य जन शिकायतों के निवारण के लिए संस्थागत तंत्र के रूप में कार्य करता है।
  • भारत में केन्द्र स्तर पर इस भ्रष्टाचार विरोधी संस्था का नाम लोकपाल है और राज्य स्तर पर इस संस्था का नाम लोकायुक्त है।
  • दूसरे शब्दों में, भारत में ओम्बुड्समैन के मॉडल को लोकपाल व लोकायुक्त की संज्ञा दी जाती है और इसके लिए ‘लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम, 2013’ को भी निर्मित किया गया है। इसके अतिरिक्त, भारत में लोकपाल एवं लोकायुक्त को मुख्यतः भ्रष्टाचार निवारण तंत्र के रूप में निर्मित किया गया है न कि जनता की शिकायतों के निवारण के संदर्भ में।
लोकपाल  की  पृष्ठभूमि
जन शिकायत निवारण तंत्र की अवधारणा सर्वप्रथम 1809 ई. में स्वीडन में विकसित हुई। सर्वप्रथम 1809 ई. में स्वीडन में ओम्बुड्समैन नामक अधिकारी की नियुक्ति की गई।
ओम्बुड्समैन अधिकारी, विधायिका की ओर से जनता की शिकायतों की सुनवाई करता है और उनका निराकरण करता है।
 इस पैटर्न पर विश्व के 40 से अधिक देशों ने जन शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना अलग-अलग रूपों में की है, जैसे-ब्रिटेन में पार्लियामेंट्री कमिश्नर, फ्रांस में प्रशासनिक न्यायालय एवं पूर्व सोवियत संघ में प्रॉक्यूरेटर की अवधारणा इत्यादि।
भारत में पृष्ठभूमि
  • भारत में ओम्बुड्समैन के सदृश लोकपाल के पद के सृजन के लिए किए जा रहे प्रयासों का इतिहास कई वर्ष पुराना है।
  • आजादी के बाद ही देश में भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए एक स्वतंत्र संस्था की स्थापना की मांग उठने लगी थी। इसकी स्थापना के लिए एम.सी. सीतलवाड़, एल.एम. सिंघवी एवं अनेक अन्य कानूनविदों तथा सांसदों के साथ-साथ प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग (1966 ई.) ने भी पुरजोर वकालत की थी।
  • प्रशासनिक सुधार आयोग ने अपनी रिपोर्ट में केन्द्र स्तर पर लोकपाल के साथ-साथ राज्यों में लोकायुक्तों की नियुक्ति की संस्तुति भी की थी।
  • लोकपाल एवं लोकायुक्त विधेयक सर्वप्रथम 1968 ई. में लोकसभा में पेश हुआ और वहाँ से पारित होने के बाद राज्य सभा में भेजा गया। परंतु, लोकसभा के दिसम्बर, 1970 में विघटन के कारण यह राज्य सभा में पारित हुए बिना व्यपगत (Lapsed) हो गया।
  • इसके बाद यह बिल 1971, 1977, 1985, 1989, 1996, 1998 और 2001 में लोकसभा में पेश हुआ पर हर बार लोकसभा के विघटन या अन्य कारणों से यह विधेयक व्यपगत हो गया।
  • सन् 2005 में द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा कि सरकार को लोकपाल एवं लोकायुक्तों की नियुक्ति शीघ्र करनी चाहिए, ताकि शीर्ष स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार को खत्म किया जा सके, लेकिन सरकार ने आयोग की इस सिफारिश को भी ठण्डे बस्ते में डाल दिया।
  • इस प्रकार, कई बार संसद में लोकपाल व लोकायुक्त से संबंधित विधेयक के व्यपगत होने और प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिशों को सरकार द्वारा अनसुना कर देने से जनता सन् 2011 में आंदोलित हो गयी।
  • सन् 2011 में अन्ना हजारे के नेतृत्व में लगभग पूरे देश ने भ्रष्टाचार विरोधाी तंत्र (लोकपाल व लोकायुक्त) को कानूनी रूप से गठित करने हेतु मांग की। अन्ततः सन् 2013 में केन्द्र सरकार ने ‘लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013’ को पारित किया।
लोकपाल की नियुक्ति प्रक्रिया
केन्द्र स्तर पर लोकपाल की नियुक्ति के लिए दो समितियों की मुख्य भूमिका है—
  • चयन समिति (Selection committee)
  • सर्च समिति (Search Committee)
  • सर्च समिति को चयन समिति की सहायतार्थ हेतु गठित किया गया है। सर्च समिति का दायित्व है कि वह लोकपाल के अध्यक्ष व सदस्यों के नामों को खोजकर चयन समिति को सौंपे। इसके बाद चयन समिति इन नामों से चुनाव करके अंतिम अनुमोदन के लिए राष्ट्रपति को भेजती है।
  • सर्च समितिः वर्तमान में इसके आठ सदस्य हैं, जिसमें अनिवार्य रूप से आधे सदस्य अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, महिला एवं अल्पसंख्यक समुदाय से होते हैं।
  • चयन समितिः इस समिति में एक अध्यक्ष (प्रधानमंत्री) और चार सदस्य होते हैं। चार सदस्यों में लोकसभा अध्यक्ष, लोकसभा में विपक्ष का नेता या लोकसभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी का नेता, भारत के मुख्य न्यायाधीश या इनके द्वारा नामित किये गए सर्वोच्च न्यायालय का कोई न्यायाधीश और उक्त चारों के द्वारा संस्तुत कोई प्रख्यात विधि वेत्ता, जिसकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013
केन्द्र स्तर पर लोकपाल और राज्य स्तर पर लोकायुक्तों द्वारा स्वतंत्र व निष्प्क्ष रूप से भ्रष्टाचार से संबंधित जाँच कराने हेतु ‘लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013’ में निम्नलिखित प्रावधान किये गये हैं—
  • यह अधिनियम कहता है कि केन्द्र स्तर पर एक लोकपाल और राज्य स्तर पर लोकायुक्तों का गठन किया जायेगा।
  • लोकपाल की संस्था में एक अध्यक्ष व अधिकतम 8 सदस्यों का प्रावधान है, जिसमें आधे सदस्य (अर्थात् 4 सदस्य) न्यायिक क्षेत्र से होंगे और शेष आधे सदस्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), महिला और अल्पसंख्यक समुदाय से होंगे।
  • लोकपाल संस्था के अध्यक्ष व सदस्यों का चयन एक चयन समिति द्वारा किया जायेगा, जिन पर नियुक्ति की अंतिम मुहर राष्ट्रपति की होगी।
  • लोकपाल सभी लोक सेवकों की जाँच कर सकता है, यहां तक कि प्रधानमंत्री का पद भी लोकपाल की जांच के दायरे में होगा, लेकिन बहुत सारे विषयों में वे (प्रधानमंत्री) लोकपाल से परे हैं। उनके खिलाफ आरोप के निपटारे के लिए विशेष प्रक्रिया अपनायी जायेगी।
  • इस अधिनियम का महत्वपूर्ण उपबंध यह भी है कि अभियोजन (Prosecution) के लंबित होने की स्थिति में भी आरोपित लोकसेवक द्वारा भ्रष्ट साधनों से एकत्रित की गई संपत्ति को जब्त करने का आदेश लोकपाल दे सकता है।
  • सभी संगठन या तत्व जो फॉरेन कॉट्रिब्यूशन रेग्युलेशन एक्ट (एफ़.सी.आर.ए.) के तहत विदेशी स्रोतों से दान या सहायता राशि प्रापत करते हैं_ उन्हें भी लोकपाल के दायरे में रखा गया है (यदि ऐसी सहायता राशि प्रतिवर्ष 10 लाख रुपए से ऊपर हो तो)।
  • लोकपाल संस्था के माध्यम से ईमानदार अधिकारियों को पर्याप्त संरक्षण दिए जाने का भी प्रावधान है।
  • लोकपाल स्वयं द्वारा प्रेषित किए गए मुद्दे की जांच कराने के क्रम में केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो सहित अन्य जांच एजेंसियों का अधीक्षण करने एवं उन्हें निर्देश देने की शक्ति से भी युक्त होगा। साथ ही, केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो या अन्य जांच एजेंसियों के वैसे अधिकारी जो लोकपाल द्वारा भेजे गए मामलों की जांच कर रहे हों, तो उनका स्थानान्तरण लोकपाल के अनुमोदन से ही हो सकता है।
  • अधिनियम प्रारंभिक जांच, पड़ताल और अभियोजन के लिए निश्चित समयावधि (6 माह) निर्धारित करता है और इसके लिए विशेष न्यायालयों के गठन का भी उपबंध करता है। प्रारंभिक जांच, पड़ताल और अभियोजन की निर्धारित समयावधि को 6 माह के लिए और बढ़ाया जा सकता है (यदि समुचित कारण उपलब्ध हो तो)।
  • विधेयक में इस बात का भी प्रावधान है कि इस अधिनियम के प्रारम्भ की तारीख को 365 दिनों के भीतर राज्य विधायिकाओं को भी विधि द्वारा लोकायुक्त की संस्था का गठन करना होगा।
  • लोकपाल संस्था के प्रशासकीय व्यय भारत की संचित निधि (Consolidated Fund) पर भारित होंगे। लोकपाल के अध्यक्ष का वेतन, भत्ता और सेवा शर्तें भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) के समान होंगी एवं अन्य सदस्यों के वेतन सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान होंगी।
  • इस अधिनियम में यह भी प्रावधान है कि जो भी लोक सेवक किसी सार्वजनिक संस्था में भ्रष्टाचार को उजागर करता है अर्थात् व्हिसलब्लोअर की भूमिका को निभाता है, उसे पर्याप्त सुरक्षा उपलब्ध कराई जाये।
  • यदि लोकपाल को पहली नजर में यह लगता है कि कोई भी लोक सेवक भ्रष्टाचार में लिप्त है तो वह उसे समन जारी कर सकता है, चाहे उस लोक सेवक के खिलाफ जांच प्रारंभ हुई हो या नहीं।
आगे की राह
उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार से संबंधित मामलों को त्वरित गति व प्रभावी रूप से हल करने एवं दोषियों को सजा दिलाने के लिए लोकपाल व लोकायुक्त महत्वपूर्ण संस्थाएं हैं, अतः केन्द्र एवं राज्य सरकारों को इन्हें मजबूत करने के लिए उपयुक्त कदम उठाने चाहिए। अभी लोकपाल का गठन हुआ है, जिसको व्यावहारिक धरातल पर भ्रष्टाचार के खिलाफ एक लम्बी लड़ाई लड़नी है, इसलिए समय के अनुसार एवं जरूरत के मुताबिक ‘लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013’ में उपयुक्त संशोधन होते रहने चाहिए ताकि इस महत्वपूर्ण संस्था की प्रासंगिकता बरकरार रहे।

SOURCE - Dheya IAS

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