Wednesday 20 June 2018

अलविदा कह चुके जी-7 की जगह कौन लेगा (Source:- Livehindustan.com)

कभी पश्चिमी उदारवादी व्यवस्था में सबसे ऊंची हैसियत पाने वाला जी-7 दम तोड़ चुका है। इसकी हत्या किसी बाहरी दुश्मन ने नहीं की, बल्कि अपने क्रोध में इसके जनक ने ही इसकी जान ली है। इस संगठन में कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका शामिल हैं। जून के पहले पखवाड़े में इसका शिखर सम्मेलन कनाडा में हुआ था, जहां अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस पर ऐसा विनाशकारी वार किया, जो पहला तो नहीं था, पर प्राणघातक जरूर साबित हुआ। 1970 के दशक में गठित इस समूह के दो उद्देश्य रहे हैं। पहला, आर्थिक, राजनीतिक और सुरक्षा मतभेदों से निपटना और सदस्यों पर आए संकटों का निपटारा करना। और दूसरा, पश्चिमी लोकतांत्रिक व उदारवादी आर्थिक व्यवस्था का विश्व पर प्रभुत्व जमाना।  हालांकि 1996-97 के एशियाई आर्थिक संकट ने वैश्वीकरण की चुनौतियों का सामना करने की इसकी सीमाओं को बेपरदा कर दिया और दुनिया की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं के संगठन जी-20 के गठन की बुनियाद तैयार की। 1997 में रूस को जी-7 में शामिल करने का फैसला लिया गया, जो समूह के दो बुनियादी सिद्धांतों के विपरीत था।
पहला, चीन और भारत की तुलना में छोटी अर्थव्यवस्था वाला देश रूस तब दुनिया की शीर्ष 10 अर्थव्यवस्थाओं में शामिल नहीं था। और दूसरा, इसका लोकतंत्र कसौटी पर पूरी तरह खरा नहीं माना जाता था। इस तरह, जी-8 भू-आर्थिकी नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक वजहों से साकार हुआ, जिसने इसके साझा उद्देश्य को भी कमजोर किया। 2014 में रूस को इससे निष्कासित करने का फैसला भी भू-राजनीतिक वजहों से ही उचित ठहराया गया था। रही-सही कसर 2008 की आर्थिक मंदी ने पूरी की, जो जी-8 की कुछ नीतियों की ही देन थी। मंदी ने जी-20 को अधिकार संपन्न बनाया, जो कम से कम भू-आर्थिकी की चुनौतियों से पार पाने में कहीं अधिक बेहतर था। आज कुल वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में जी-7 देशों की हिस्सेदारी 47 फीसदी के करीब है। इसके पांच देश (अमेरिका, जर्मनी, जापान, ब्रिटेन और फ्रांस) ही शीर्ष सात आर्थिक ताकतों में शामिल हैं। इटली व कनाडा को चीन व भारत ने पीछे धकेल दिया है। जी-7 की मौत पर ज्यादा आंसू बहने की संभावना नहीं है। उम्मीद है, इसका पुनरोद्धार हो या कई दूसरे गुट हम बनते हुए देखें। पहला रास्ता यह है कि जी-20 को जी-7 की जगह मिल जाए। यह बदलाव तभी प्रभावी होगा, जब मूल उद्देश्य वित्तीय और आर्थिक संकटों का तत्काल निपटारा हो।
हालांकि इसने भी यदि भू-आर्थिकी के मुद्दों से निपटना व लोकतांत्रिक उदारवादी व्यवस्था को बरकरार रखना मूल उद्देश्य बनाए रखा, तो जी-20 अनुपयुक्त साबित होगा। इसके कई सदस्य देश लोकतंत्र की अवधारणा पर खरे नहीं उतरते और उनमें भू-आर्थिकी के हित भी टकरा रहे हैं। दूसरा विकल्प जी-7 में सुधार का है, जो सिर्फ देश की अर्थव्यवस्था के आकार पर आधारित हो। संशोधित जी-7 में चीन और भारत भी शामिल हो सकेंगे तीसरा विकल्प ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) के आसपास जी-6 बनाने का हो सकता है। विश्व जीडीपी में करीब 30 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले ब्रिक्स देश आज शीर्ष 10 अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हैं। हालांकि अमेरिका के बिना, जिसकी वैश्विक अर्थव्यवस्था में लगभग 24 फीसदी हिस्सेदारी है, इस गुट का भू-आर्थिकी प्रभाव सीमित रहने की संभावना है। एक विकल्प सात देशों का एक नया समूह भी सकता है, जिसमें ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, यूरोपीय संघ, भारत, जापान और दक्षिण कोरिया शामिल हों। इन सबकी वैश्विक जीडीपी में करीब 40 फीसदी की हिस्सेदारी है और यह बड़ी आर्थिक ताकतों व उदारवादी वैश्विक व्यवस्था, दोनों का प्रतिनिधित्व करेगा। हालांकि यूरोपीय संघ की खस्ता हालत और अमेरिका के साथ बाकी के सदस्य देशों के आर्थिक व सुरक्षा संबंध इस विकल्प को शायद ही हकीकत बना सकें। लब्बोलुआब यही है कि नए जी-7 के उभरने की पूरी संभावना है, चाहे रास्ता जो भी हो।

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